तुम मत सुनो कोई ध्वनि
अहसास और स्मृतिनहीं आते दीवारों से !
दीवारें तो ढह जाती हैं
और........
अहसास ; स्थिर !
स्मृति ; ठोस !!
अवशेष भर नहीं
ठेठ तक की अनुभूति .
होती तो बहुत है बतकही
आँखों के भीगने की
लेकिन नहीं जाना मैंने कभी
भीगने से पहले
बिखर जाते हैं बतकहे
सबके बीच
और
टूट जाते हैं सपने.
परछाई भी नहीं सुहाती
सारे सुखों की सीमाओं के साथ-साथ
मन भी नहीं भरता है
घंटों-घंटों बैठ बतियाकर भी.
मैं कोई क्रम नहीं बनाता !
किसी का क्रम भी नहीं देखता मैं !!
क्रम शब्दों में नहीं आता
क्रम संबंधों में भी नहीं रहता.
तुम मत सुनो कोई ध्वनि
काल भ्रमण की शिराओं से
केवल यह जानो तुम
भ्रमण हमारा ही है.
हम काल से जीत सकते हैं
हम काल से हार सकते हैं.
और हमें जीना है-
सभी के संघर्षों में
देते अपना हाथ-
.......सभी के साथ.
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