Wednesday, March 10, 2010
shalendraupadhyay
संबंधों की तलाश
छू गई सर्द हवा मेरे तन-मन को
और सिमट गया माटी का ढांचा
हथियारों की तरह किटकिटाने लगे दांत
संबंधों की तरह कांपने लगी काया
और अंत में;
मैं मर गया.
कुछ भी कह लो
कैसे जी सकते हैं हम
इस तरह कि_दिन भर मरते रहे.
मैं तो मर नहीं सकता
मन को छोड़कर
और जी भी नहीं सकता
सिर्फ तन को लेकर.
फिर चल पड़ता हूँ
मन को तन से जोड़ने वाले
संबंधों की तलाश में.
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