Wednesday, March 24, 2010

shalendraupadhyay

जीवन संगीत
मत समझो मुझे सारंगी
नहीं चाहता मैं शोक स्वर;
शहनाई की धुन
बांसुरी की थिरकन
सितार का सम
तबले की थाप
आलाप की तान.
........प्रेयसी, मैं यही सब होऊं ! 
मैं और भी कुछ होऊं
ख़याल, ठुमरी, कजरी, चैती के बोल
हर एक में, मैं भटकता फिरूं !!

सखी, अब सीख लो
विलंबित और द्रुत की पहुँच.
सखी, अब सीख लो
सम पर पहुँचने की गुंजाईश.

राग भैरवी से भीगा भोर
किस समय पर लायेगा तारों विहीन रात !
मैं मृत्यु का परिणय नहीं
सरगम का समवेत सार हूँ मैं.
पखेरूओं का कलरव हो जीवन संगीत
और फिर हो; शिव अभिषेक 
तुम धारो कलश, नटराज होऊं मैं.