खंडहर
वैसी ही/वही आवाज़ें
आती रहती हैं
खंडहरों से
जैसे सांसों से आती आहें.
टकराती हैं दीवारें
खंडहरों की
जैसे इंसान की मानसिकता.
खंडहरों से आती आवाज़ें
और टकराहट उनकी
सीमित है अपने आप में ही
लेकिन आगे हैं उससे भी
इंसानी मनोभाव,
ख़त्म करने को इंसानियत.
फिर कैसे हो?
उनका मिलन.
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