Saturday, February 27, 2010

shalendraupadhyay

सूर्य 
मेरे यहाँ बसती हैं 
उम्र भर की रोशनियाँ
कंदीलों की छाया
बहक जाती है
इन रोशनियों में घूलते-मिलते.
तब बनता है
एक नया आभामण्डल
सारे सूर्य की रोशनी का.
मेरे यहाँ की रोशनी
विस्तृत हो कर
मुझ में सिमट जाती है
और मैं ; बन जाता हूँ सूर्य.
मेरा सूर्य/मैं
विगत को ठेलकर
एक आकार बन जाते हैं
चंहु ओर
              रोशनियाँ देने को.
और
मैं/सूर्य.......
जीता जाता हूँ
उम्र भर की रोशनियों से
उर्जा लेकर.......
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