शव
दरवाज़े पर दस्तक होती है
जब भी जाता है कोई शव मेरी गली से
चलो-तुम्हारा भी काल आ गया.
मैं, शव, गली और दरवाज़ा !
क्यों जुड़े हैं आपस में इस तरह
सोचता रहा जाता हूँ देर रात तक
और आ जाती है चुपके से नींद.
नींद तनाव को ढीला करती होगी/
होगी विश्राम देती
किसी और के लिए
बडबडाता हूँ मैं तो नींद में/
उन्नीन्दें सपनों की भरमार से.
और उचट जाती है नींद !
नींद में देखे सपने
क्या होते हैं किसी की घटनाएं ?
दोपहर भर का मायाजाल-?
मुझे नहीं पता.
मैं तो तनाव को ही भोगता हूँ
तुम्हारी स्मृति भी आती है बीच-बीच में
और मीठी हो जाती है नींद.
मैं, नींद और तुम्हारी स्मृति
सभी तो एक समीकरण हैं/
गणित के ही नहीं
जो नहीं हो सकते हल/
कभी-भी
अकेले-अकेले.
सत्य में भी तुम्हें ही ढूँढता हूँ/
जब सब होता है सामान्य
ताकि शव देखते समय
मुझे देखो तुम
और कर सको हल, गणित
मेरे सपनों का, मेरे तनावों का.
नहीं झुठलाता सच को/
.......................मैं;
क्योंकि एक शव ही हूँ मैं भी
.................शव
जीवित ही सही.
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