क्षण
वह कसन तुम्हें समर्पित हैं
मेरे जीवन
जब में बंद कमरे में बैठा
तुम्ही से बोलता रहता हूँ.
गुनाह मेरे थे ओस क्षण में
अथवा नहीं/
नहीं दोहराना चाहता अब.
फिर भी जब ले जाना चाहता हूँ
स्वयं को, उसी स्तिथि में
याद आ जाता है तब मुझे
मेरे यह क्षण तो
समर्पित कर दिए हैं मैंने तुम्हे.
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